‘चंदे’ का चांद

आलोक सिंह

आईआईएमसी, दिल्ली

आने वाला 13 मार्च भारत के राजनीतिक इतिहास में ऐतिहासिक, परिवर्तनकारी, युगांतकारी साबित होगा कि नहीं, कुछ कह नहीं सकते।शायद नहीं ही हो। लेकिन इस दिन राजनीतिक ‘चंदे’ का चांद अवश्य ही बेनकाब होने वाला है। बेनकाब होते ही सारे दाग नग्न आंखों से आसानी से देखे जा सकेंगे।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रोरल बॉन्ड(चुनावी बांड) को असंवैधानिक करार करते हुए चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि वह 13 मार्च 2024 को, राजनीतिक पार्टियों को अब तक बांड से प्राप्त सभी धनराशि के स्रोतों का उल्लेख सार्वजनिक तौर पर करे।

सवाल ये है कि अब इसमें नया क्या है? क्या इससे पहले राजनीतिक पार्टियां चंदा नहीं लेती थीं? यदि लेती थीं तो क्या उनके स्रोतों का उल्लेख नहीं होता था?

बात ये है कि चुनावी बांड की व्यवस्था 2018 में लागू होती है। इससे पहले कंपनी एक्ट के तहत चंदा लिया जाता था। इस एक्ट के तहत कोई भी कंपनी किसी राजनीतिक पार्टी को यदि 20 हजार से अधिक चंदा देती है तो उसका उल्लेख होता था। अर्थात किसने दिया, किसको दिया, कब दिया और कितना दिया। इन सबकी जानकारी पब्लिक डोमेन में होती थी। चंदे की राशि चेक में, डिमांडिंग ड्राफ्ट या कैश में हो सकती थी। इसके साथ ही कंपनी अपने पिछले तीन साल की शुद्ध लाभ का 7.5 प्रतिशत ही किसी को चंदा दे सकती थी और इसका विवरण कंपनी के प्रॉफिट एंड लॉस खाते में भी होता था।

चंदा लेने की चुनावी व्यवस्था 2018 में यह कहकर लागू की जाती है कि इससे चंदा लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता, गोपनीयता का ख्याल रखा जाएगा तो इसके साथ ही काले धन का चंदे में प्रयोग पर भी नियंत्रण किया जा सकता है। इस व्यवस्था को लाने के लिए कंपनी एक्ट, लोक प्रतिनिधित्व एक्ट में बदलाव किए गए थे। आधिकारिक बैंक एसबीआई को चुना गया, जो चुनावी बांड जारी करेगा। अब चंदा कितना भी, किसी को भी दिया जा सकता था। इसकी जानकारी एसबीआई और चुनाव आयोग के पास ही रहती है।

अब एक नजर आंकड़ों पर फेर लेते हैं। नीचे दिए गए तस्वीर में देखा जा सकता है कि कौन सी पार्टी को बांड से कितना चंदा मिला हुआ है। इसमें लगभग सभी पार्टियों की किसी न किसी राज्य में सरकार है। भाजपा ने चंदे के मामले में अपना कुतुब मीनार तो बना ही लिया है। कुल चंदे का 57 प्रतिशत जो अपने पास है। कहने का अर्थ यह है कि ‘चंदा चंदा ना रहा।’इस व्यवस्था के तहत पारदर्शिता कम, भ्रष्टाचार की गोपनीयता ज्यादा सुरक्षित हो गई थी।

इस व्यवस्था के आने के साथ ही एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाल दी थी, जिसका निर्णय अब चुनावी बांड असंवैधानिक है, के रूप में आया है।

इस निर्णय पर भाजपा ने तो जैसे चुप्पी साध ली है तो वहीं कांग्रेस ने भी खुलकर कुछ नहीं बोला है। 13 मार्च को सत्ता और व्यापार के बीच का छुपा हुआ प्यार सबके सामने होगा।

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