आलोक सिंह
पुस्तक समीक्षा– न्यूजमैन@वर्क
मूल्य–225
पृष्ठों की संख्या– 148
प्रकाशक– वाणी प्रकाशन
जैसे एक पुलिसवाला इंसान है, जैसे एक डॉक्टर इंसान है, जैसे एक पोस्टमार्टम करने वाला कर्मचारी भी इंसान है ठीक वैसे ही पत्रकार भी एक जीता जागता इंसान है। वह खबरों के जुटाने के क्रम में घटना से बुरी तरह से प्रभावित भी होता है तो दूसरी ओर उसे प्रभावी तरीके से सजाकर समाचार पत्र के पेज पर भेजता भी है। इन दोनों के बीच में पत्रकारों की जो मनःस्थिति है उसी को लक्ष्मी प्रसाद पंत अलग–अलग घटनाओं के माध्यम से उजागर करते हैं।
घटनाएं जो पुस्तक में दर्ज हैं वह न केवल ‘पंत’ को और पत्रकार को बल्कि एक सामान्य पाठक को भी उसके नतीजे के बारे में सोचने पर मजबूर कर सकता है। घटनाओं को सुनते और पढ़ते समय जो बातें उनके मन में चलती हैं वह शब्दशः पुस्तक में उतारने में सफल होते है जिससे कि पाठक के आंखों के नीचे तस्वीर तैरने लगती है।
इस पुस्तक में 21 पाठ हैं जिसमें 21 अलग–अलग घटनाओं के विवरण हैं जो कि जयपुर,भोपाल, देहरादून ,उदयपुर जैसे शहर और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य से लिए गए हैं। पत्रकारिता करते पत्रकारों का एक व्यक्ति के तौर पर एक भयावह पक्ष भी होता है जिसे एक सामान्य पाठक ने शायद ही उसके बारे में सोचा हो,विचार किया हो। लेकिन जो कोई भी इस पुस्तक को पढ़ता है और वह अगले दिन अखबार में आत्महत्या, रेप, मर्डर तमाम तरह की खबरों को पढ़ता है तब वह उस समय खबर छापने से पहले पत्रकारों के मन उमड़ रहे उथल–पुथल के बारे में अवश्य ही सोचेगा।
वसीम बरेलवी, मुन्नवर राणा सहित और भी शायरों के शायरी का इस्तेमाल कर पाठ को रोचक बनाने की कोशिश की गई है। पत्रकारिता संवेदनयुक्त से संवेदन शुन्य बनने की यात्रा है और इस यात्रा को लक्ष्मी प्रसाद पंत ने शब्दों और उपमाओं के माध्यम से बखूबी विस्तार से बताया है। पत्रकार केवल घटनाओं को सूचित करने के लिए ही नही होता बल्कि आगामी खतरों को भापता भी है। इस किताब में केदारनाथ आपदा को लेकर हुई भविष्यवाणी जो बाद में सच हुई उसी की ओर इशारा करती है।
सामान्य पाठक से लेकर प्रशिक्षु पत्रकार तक इस पुस्तक को पढ़ कर अनुभव ले सकते हैं।
ज्ञात हो कि लक्ष्मी प्रसाद पंत मौजूदा वक्त में दैनिक भास्कर के प्रधान संपादक हैं।
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