आलोक सिंह
आईआईएमसी, दिल्ली
... तो गांधी परिवार से मुक्त हो गई कांग्रेस?
2024 का रण नजदीक है। सभी राजनीतिक पार्टियां रणनीतियों की बिसात बिछाने में लग चुकी हैं। बस अब बिगुल बजने का इंतजार है कि युद्ध शुरू हुआ। चुनाव दो ध्रुवीय होने की दिशा में अग्रसर है। एक ओर ‘राजग’(एनडीए) तो दूसरी ओर यूपीए का नया रूप ‘इंडिया’ है।
दरअसल इंडिया गठबंधन की दिल्ली वाली बैठक से खबर आई कि मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में उतारा जाएगा। और यह सुझाव जदयू और ममता की ओर से आया। मल्लिकार्जुन खड़गे पिछले वर्ष अक्टूबर में ही भारत की सबसे पुरानी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, जो की 24 साल बाद कोई गैर–गांधी परिवार के नेता ने इस पोस्ट को ग्रहण किया था। और अब प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में सामने आने की बारी है।
तब,क्या यह मान लेना चाहिए कि कांग्रेस अब परिवारवाद की परछाई और आरोपों से मुक्त हो जायेगी? क्या यह मान लेना चाहिए कि कांग्रेस अब पूरी तरह से मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में काम करेगी?
इसका जवाब शायद ‘ना’ में ही है क्योंकि राहुल गांधी अब भी एक प्रमुख नेता हैं, बल्कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण नेता हैं।
राहुल ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से 2019 में ही इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद भी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को राहुल गांधी ही लीड कर रहे थे, जबकि खड़गे कुछ ही समय के लिए ही जुड़े थे। भारत जोड़ो यात्रा पार्ट–2 की भी शुरुआत होने की संभावनाएं जताई जा रही हैं जिसको राहुल गांधी ही लीड करेंगे। हाल ही में संपन्न हुए चुनावों को छोड़ दें तो इससे पहले लगभग सभी चुनाव में राहुल गांधी ही लीड कर रहे थे। स्टार प्रचारकों में से सबसे अधिक इन्हीं की रैलियां आयोजित की गई। इस बार के मध्यप्रदेश चुनाव में राहुल ने 11 रैलीयां की। इसी तरह राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुआ।
मध्य प्रदेश में जीतू पटवारी(अध्यक्ष), उमंग सिंघार (नेता प्रतिपक्ष) को पार्टी ने आगे बढ़ाया है, जो कि राहुल के बेहद करीबी माने जाते हैं।
वहीं सोनिया गांधी का प्रभाव कांग्रेस पर कितना है, यह जगजाहिर है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के समय उनका खड़गे को खुला समर्थन था। नतीजा यह था की 84 प्रतिशत के साथ खड़गे चुनाव जीत जाते हैं।
..तो हमने देखा कि राहुल और सोनिया गांधी का प्रभाव कांग्रेस के निर्णयों में कैसे पड़ता है। एक पल के लिए सोचा जाए कि कांग्रेस परिवारवाद की परिछाई से दूर जाना चाहती भी है, जो कि हो भी सकता है, फिर भी वह जनता को विश्वास कैसे दिला पाएगी।
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