आलोक सिंह
आईआईएमसी, दिल्ली
शांति की राह पर नॉर्थ–ईस्ट ने बढ़ाया एक और कदम
2023 के अंत में भारत और असम सरकार के साथ हुआ उल्फा(यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम) की त्रिपक्षीय समझौते ने असम के लिए शांति की राह को और भी आसान कर दिया है।
प्रारंभ से ही नॉर्थ–ईस्ट को उग्रवादियों ने अशांत कर रखा था। प्रकार–प्रकार की उग्रवादी गठबंधन बने हुए थे। उसी में से एक है उल्फा(यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम)।
उल्फा की शुरुआत 1979 में हुई थी और इसका चरम 90 के दशक में देखा गया था। इनका कहना था कि भारत सरकार असम के संसाधनों पर कब्जा जमाए हुए है लेकिन वह असम की जनता के लिए वह कुछ भी नहीं करती। परिणामस्वरूप चायबागान के मालिकों की हत्या करना, अपहरण करना और उनसे फिरौती मांगा करते थे। यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा। 2010 में उल्फा के दो भाग हुए। उल्फा, राजखोवा और परेश बरुआ के गुट में बंट गई। 2011 से ही राजखोवा का शांति के पक्ष के प्रति झुकाव था लेकिन परेश बरुआ बिलकुल इसके विपरित थे और हैं।
यह जो नई दिल्ली में समझौता हुआ वह राजखोवा गुट के उल्फा से हुआ है।
पिछले कुछ वर्षों में बोडो, कार्बी,आदिवासी समूह के साथ समझौते हुए हैं और उग्रवादी समूहों ने सशस्त्र समर्पण किया है। इसने शांति को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन अभी भी लंबा सफर तय करना शेष है।
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